डायबिटीज (मधुमेह) संपूर्ण विश्व में चिकित्सा जगत के लिए एक गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। पिछले 20 वर्षों में डायबिटीज के पेशेंट की संख्या पूर...
डायबिटीज (मधुमेह) संपूर्ण विश्व में
चिकित्सा जगत के लिए एक गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। पिछले 20 वर्षों में
डायबिटीज के पेशेंट की संख्या पूरे विश्व में 3 गुना हो गई है। डायबिटीज (मधुमेह) बीमारी क्या है, डायबिटीज (मधुमेह) कितने प्रकार का होता
है, डायबिटीज (मधुमेह) के लक्षण, कारण और उपाय, डायबिटीज
(मधुमेह) का ईलाज, डायबिटीज (मधुमेह) से बचाव आदि सभी प्रश्नों का उत्तर आपको इस आर्टिकल में मिलेगा।
👉डायबिटीज (मधुमेह) बीमारी क्या है?
👉डायबिटीज (मधुमेह) कितने प्रकार का
होता है?
👉डायबिटीज (मधुमेह) के क्या लक्षण हैं?
👉डायबिटीज (मधुमेह) का कारण?
👉डायबिटीज (मधुमेह) का नियंत्रण/ ईलाज कैसे करें?
👉डायबिटीज (मधुमेह) की जांच कैसे की जाती है?
डायबिटीज (मधुमेह) बीमारी क्या है?
सामान्यतः डायबिटीज (मधुमेह) स्वयं में कोई रोग नहीं है, यह एक असामान्य शारीरिक अवस्था है, जब किसी व्यक्ति के खून में ग्लूकोज की मात्रा बहुत अधिक हो जाती है, तो इसे डायबिटीज कहते हैं, कई बार इसे शुगर की बीमारी भी कहा जाता हैं।
मानव शरीर में पैंक्रियास या अग्नाशय नाम की एक ग्रंथि होती है, जो इंसुलिन नाम के हार्मोन का स्राव करती है, यह इंसुलिन ग्लूकोज को ऊर्जा में बदल देता है, जिसका शरीर की कोशिकाएं प्रयोग करते हैं। परंतु किसी कारणवश यदि शरीर में इंसुलिन की मात्रा पर्याप्त नहीं होती या, इंसुलिन पूरी तरह से काम नहीं कर पाता तो, ऐसी स्थिति में शरीर की कोशिकाएं शुगर/ ग्लूकोज को ऊर्जा के रूप में नहीं बदल पाती, और शुगर रक्त में ही रह जाता है, जिससे इसकी मात्रा बढ़ती जाती है।
डायबिटीज तीन प्रकार की होती है
- टाइप वन डायबिटीज
- टाइप टू डायबिटीज और
- प्रेगनेंसी के दौरान होने वाली (जेस्टेशनल) डायबिटीज
टाइप वन डायबिटीज बच्चों किशोरों और युवाओं में पाई जाने वाली डायबिटीज है, जब पैंक्रियास द्वारा इंसुलिन का निर्माण रुक जाता है। इस प्रकार की डायबिटीज में इंसुलिन की अलग से डोज मरीज को दी जाती है।
टाइप
टू डायबिटीज वयस्क लोगों में पाई जाने वाली सामान्य डायबिटीज है, इसमें शरीर में
इंसुलिन का उत्पादन कम हो जाता है, इसके कारण ग्लूकोस का ऊर्जा में परिवर्तन पूरी
तरह से नहीं हो पाता है, और रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने लगती है।
जेस्टेशनल (Gestational) डायबिटीज, महिलाओं में प्रेगनेंसी के दौरान भी रक्त में ग्लूकोस की मात्रा बढ़ जाती है, इस प्रकार की डायबिटीज को जेस्टेशनल (Gestational) डायबिटीज भी कहा जाता है। सामान्यतया प्रेगनेंसी समाप्त होने के बाद यह स्वतः ही समाप्त हो जाती है, परंतु प्रेग्नेंसी के समय इसकी मॉनिटरिंग करते रहना आवश्यक है, क्योंकि यदि शुगर की मात्रा लगातार खून में अधिक बनी रहे तो, गर्भस्थ शिशु का वजन बढ़ सकता है, और डिलीवरी में समस्या हो सकती है। इसके अलावा गर्भावस्था के पश्चात भी इसकी मॉनिटरिंग आवश्यक है, अन्यथा यह जीवन भर के लिए भी हो सकती है।
डायबिटीज के लक्षण
डायबिटीज को पहचानना मुश्किल होता है, क्योंकि इसका कोई विशिष्ट लक्षण नहीं है। परन्तु जब डायबिटीज हो जाती है तो, शरीर में विभिन्न प्रकार की समस्याएं पैदा होने लगती हैं, और जांच के पश्चात इसका पता चलता है, कभी-कभी किसी अन्य कारण से की गयी खून की जांच में भी इसका पता चलता है। डायबिटीज से ग्रस्त व्यक्ति में निम्न प्रकार की लक्षण पाए जाते हैं -
- बार बार पेशाब लगना
- ज्यादा प्यास लगना
- बहुत अधिक भूख लगना
- वजन का अचानक कम हो जाना
- थकान का होना
- चक्कर आना
- चिड़चिड़ापन होना
- ठीक से नींद ना आना
- आंखों की रोशनी कमजोर होना है या दुल्ला देखना
- हाथ और पैरों में कमजोरी, झनझनाहट, और सुन्न होना
- बार-बार त्वचा मसूड़े वह पेशाब का संक्रमण होना
- चोट या घाव का देर से भरना या, ठीक ना होना
- गुप्तांग के आसपास खुजली होना
डायबिटीज के कारण
डायबिटीज
के अनेक कारण होते है, जिनमे कुछ हमारी जीवन शैली से जुड़े होते है, और कुछ
आनुवाशिकी से जुड़े होते हैं-
- अनुवांशिकी
- लिंग
- शारीरिक वजन
- शारीरिक असक्रियता
- तनाव
अनुवांशिकी
ऐसे
कई कारण हैं, जिनकी वजह से डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है। इनमें से कुछ को
नियंत्रित किया जा सकता है, और कुछ को नहीं, एक व्यक्ति में कई प्रकार के एक या एक
से अधिक कारण हो सकते हैं, जैसे कि पारिवारिक इतिहास, यदि किसी व्यक्ति के
माता-पिता भाई-बहन को मधुमेह है तो, उसे डायबिटीज होने की संभावना अधिक बढ़ जाती
है।
लिंग
30 वर्ष की उम्र तक महिलाओं में मधुमेह होने की संभावना अधिक होती है। लेकिन
45 से 65 वर्ष के बीच में महिलाओं में
यह संभावना पुरुषों के मुकाबले दोगुनी हो जाती है।
शारीरिक वजन
आवश्यकता
से अधिक वजन मधुमेह के कारण हो सकता है। सामान्यता देखा गया है कि 75%
रोगियों का वजन उनके सामान्य वजन से 10 से 15 किलोग्राम अधिक पाया जाता है।
शारीरिक असक्रियता
जो लोग शारीरिक श्रम करते हैं, उनमें मधुमेह होने की संभावना कम होती है। इसके विपरीत कम शारीरिक गतिविधि करने वाले अथवा लंबे समय तक बैठकर काम करने वाले लोगों में मधुमेह होने की संभावना अधिक होती है।
तनाव
अधिक तनाव या दबाव में कार्य करने वाले लोगों में भी डायबिटीज होने की संभावना अधिक होती है।
आहार
तला भुना अधिक मसालेदार, घी और तेल वाला गरिष्ठ भोजन करने वाले लोगों में, पौष्टिक और संतुलित भोजन करने वालों की तुलना में डायबिटीज होने की संभावना अधिक होती है।
डायबिटीज का नियंत्रण
डायबिटीज
के कारणों में कुछ कारण ऐसे हैं जिन्हें नियंत्रित नहीं किया जा सकता है, जैसे कि
अनुवांशिकी, लेकिन एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर डायबिटीज को नियंत्रित रखा जा सकता
है, और इसकी संभावना को कम किया जा सकता है।
जैसे
कि-
- वजन को नियंत्रित करना
- नियमित व्यायाम और सक्रिय जीवन शैली अपनाना
- तंबाकू का सेवन, धूम्रपान,और शराब के सेवन को रोककर
- अधिक तला भुना, चर्बी युक्त गरिष्ट भोजन से बचकर
डायबिटीज की जांच
तीन
प्रकार की जांच से डायबिटीज और उसके स्तर का पता लगाया जाता है-
- फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोस टेस्ट (FPGT) / खाली पेट खून की जांच
- ओरल ग्लूकोस टोलरेंस टेस्ट (OGTT)
- ग्लाएसिटेड हीमोग्लोबिन टेस्ट
फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोस टेस्ट (खाली पेट खून की जांच)
इस
प्रकार की जांच खाने के 8 घंटे के पश्चात खून के द्वारा की जाती है, खून की मात्रा में यदि ग्लूकोस
का निर्धारित स्तर यानी 126 मिलीग्राम/dl से अधिक है तो इसे मधुमेह
माना जाता है।
ओरल ग्लूकोस टोलरेंस टेस्ट (OGTT)
इस
जांच को करने के लिए पहले फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोस टेस्ट किया जाता है, इसके बाद
व्यक्ति को 75 ग्राम ग्लूकोस पिला कर 2घंटे बाद दोबारा खून का सेम्पल
लिया जाता है। इस प्रक्रिया से पता लगाया जाता है कि, किसी व्यक्ति को मधुमेह है
या नहीं, इस प्रक्रिया के बाद खून में ग्लूकोज की मात्रा 200
मिलीग्राम/dl से अधिक है, तो डायबिटीज की स्थिति
है।
ग्लाएसिटेड हीमोग्लोबिन टेस्ट
इस टेस्ट में 3 महीनों के दौरान शरीर में शुगर के स्तर का पता चलता है। यह टेस्ट इस बात को जांचने के लिए किया जाता है कि, मरीज जिन दवाओं का सेवन कर रहा है, वह शरीर पर कार्य कर रही हैं अथवा नहीं। इस जांच में खाली पेट होने या ग्लूकोज लेने की आवश्यकता नहीं होती, यह कभी भी की जा सकती है। इसमें HbA1c का सामान्य स्तर 5.6 से 6.4 परसेंट होता है।
प्रीडायबिटीज अवस्था
कुछ लोगों की खाली पेट खून की जांच में शुगर की मात्रा डायबिटीज के स्तर (126mg/dl) से कम होती है। परंतु ओरल ग्लूकोस टोलरेंस टेस्ट की जांच असामान्य होती है। ऐसे व्यक्तियों में डायबिटीज और दिल की बीमारियों का खतरा अधिक होता है। ऐसे व्यक्ति यदि बचाव के साधन अपनाएं तो वह डायबिटीज से बच सकते हैं।
विशेष- उपर दी गई सभी जानकारी डायबिटीज
(मधुमेह) के संबंध में आप
की सामान्य जानकारी बढ़ाने के लिए हैं, यह कोई विशेषज्ञ सलाह नहीं है।
यह आर्टिकल
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