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डिप्रेशन(अवसाद) क्या है | डिप्रेशन के कारण | डिप्रेशन के प्रकार | महिलाओं में डिप्रेशन | डिप्रेशन के लक्षण | डिप्रेशन से नुकसान | डिप्रेशन से बचाव | और डिप्रेशन का उपचार।

इस लेख में हम यह जानेंगें कि डिप्रेशन(अवसाद) क्या है ? और इसके क्या कारण हैं ? डिप्रेशन कितने प्रकार का होता है ? महिलाओं में डिप्रेशन अधिक ...

इस लेख में हम यह जानेंगें कि डिप्रेशन(अवसाद) क्या है? और इसके क्या कारण हैं? डिप्रेशन कितने प्रकार का होता है?महिलाओं में डिप्रेशन अधिक क्यों होता है? डिप्रेशन के क्या लक्षण हैं, विभिन्न आयु वर्गों में डिप्रेशन से नुकसान या लक्षण  इससे बचाव और इसका उपचार कैसे किया जा सकता हैं।

डिप्रेशन क्या है?  
डिप्रेशन कितने प्रकार का होता है?
डिप्रेशन के क्या कारण हैं?
डिप्रेशन के लक्षण क्या हैं?
विभिन्न आयु वर्ग में डिप्रेशन से नुकसान या लक्षण अलग हो सकते हैं 
डिप्रेशन का उपचार कैसे किया जाता हैं?

डिप्रेशन(अवसाद) क्या है?

उदासी हमारी एक सामान्य मानसिक अवस्था है, कभी मन दुखी और उदास होता है, और हमें कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा होता है। सभी व्यक्ति कभी ना कभी इसका अनुभव करते हैं। 

जब तक यह भाव कुछ समय के लिए और यदा-कदा होता है, तो यह सामान्य है, लेकिन जब यह मानसिक अवस्था लंबे समय तक बनी रहती है, तो यह एक गंभीर समस्या बन जाती है, और इसका नकारात्मक प्रभाव हमारी सामान्य दिनचर्या भूख,नींद,और काम पर भी पड़ने लगता है। यही अवस्था डिप्रेशन या अवसाद कहलाती है, डिप्रेशन कई हफ्तों, महीनों या वर्षों तक रह सकता है।

मानव मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटर होते हैं, जो हमारे व्यवहार, गतिविधियों, उत्साह, आत्मविश्वास, खुशी आदि मनोभावों को नियंत्रित करते हैंइन न्यूरोट्रांसमीटर में सेरोटोनिन, डोपामिन आदि हैं, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण सेरोटोनिन है, यह देखा गया है कि, सेरोटोनिन की मात्रा कम या असंतुलित होने पर अवसाद की समस्या होती है। डिप्रेशन के साथ अन्य मानसिक समस्याएं (जैसे कि एन्जायटी) अथवा अन्य बीमारियाँ (जैसे कि मधुमेह, कैंसर, हृदय रोग अस्थि या जोड़ों का दर्द आदि) हो सकते हैं।

डिप्रेशन कितने प्रकार के हो सकते हैं?

डिप्रेशन की समय अवधि के अनुसार यह दो प्रकार के हो सकते हैं-

  • कम अवधि का डिप्रेशन
  • लंबी अवधि का डिप्रेशन

कुछ डिप्रेशन अल्पकालिक होते हैं, जो अधिकतम 2 सप्ताह तक हो सकते हैं। यह किसी तात्कालिक परिस्थिति का परिणाम होते हैं, जिससे व्यक्ति की दिनचर्या और दैनिक कार्य प्रभावित होते हैं।

लंबी अवधि के डिप्रेशन अधिकतम 2 वर्ष तक या उससे भी लंबे समय तक रह सकते हैं  इस प्रकार के डिप्रेशन में कई बार लक्षण गंभीर नहीं होते जिससे यह पता लगाना मुश्किल होता है कि व्यक्ति डिप्रेशन में है अथवा नहीं है।

कुछ डिप्रेशन विशेष परिस्थिति अथवा विशेष मौसम में होते हैं-

प्रसव के दौरान महिलाओं में होने वाले  डिप्रेशनप्रायः महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान, अथवा प्रसव के पश्चात डिप्रेशन की स्थिति आती है।

मौसमी डिप्रेशन;  कुछ डिप्रेशन मौसम परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं, जैसे कि सर्दियों के मौसम में अथवा, जब कभी कई दिनों तक धूप नहीं निकलती ऐसी स्थितियों में भी डिप्रेशन के केस अधिक देखे जाते हैं, मौसम बदलते ही ये समस्याएं दूर हो जाती हैं।

मनो विकारों से जुड़े हुए डिप्रेशन, कुछ डिप्रेशन विशेष मानसिक समस्याओं से जुड़े होते हैं, यह गंभीर किस्म के होते हैं, और इसके नियमित उपचार की आवश्यकता होती है।

शोध बताते हैं कि आनुवंशिक, जैविक, पर्यावरणीय और मनोवैज्ञानिक कारक डिप्रेशन के लिए जिम्मेदार होते हैं। कुछ प्रमुख कारण जो सामान्यतः पाए जाते हैं, नीचे दिए गए हैं-

शोषण-  यदि किसी व्यक्ति का शारीरिक, यौन या भावनात्मक शोषण हो रहा हो अथवा पूर्व में किया गया हो, तो ऐसे व्यक्तियों में डिप्रेशन होने की संभावना अधिक होती है। 

उम्र- जो लोग बुजुर्ग हैं, उनमें डिप्रेशन का खतरा अधिक होता है।यदि  अकेलेपन के शिकार हैं और सामाजिक रुप से एकाकी हैं तो ऐसी स्थिति में एक खतरा और भी बढ़ जाता है। 

दवाएं- कुछ दवाओं के साइड इफेक्ट से भी डिप्रेशन होने की संभावना होती है। 

विवाद- व्यक्तिगत संघर्ष परिवार के सदस्यों, मित्रों के साथ विवाद या किसी प्रकार का सामाजिक विवाद झेल रहे व्यक्तियों में भी डिप्रेशन की संभावना अधिक होती है। 

प्रियजन की मृत्यु या हानि- किसी प्रियजन की मृत्यु या आर्थिक हानि के बाद होने वाला दुःख, स्वाभाविक है, लेकिन  यदि यह लंबे समय तक बना रहता है, तो डिप्रेशन की संभावना बढ़ जाती है। 

लिंग- पुरुषों की तुलना में महिलाओं में डिप्रेशन होने की संभावना लगभग दोगुनी होती है। जिसका मुख्य कारण है कि, महिलाएं अपने जीवन काल में अनेकों बाद हार्मोनल परिवर्तनों से गुजरती हैं,जो कि उनके लिए  डिप्रेशन की संभावनाओं को बढ़ा देता है।

आनुवंशिक- यदि किसी व्यक्ति  के परिवार में डिप्रेशन का इतिहास रहा है तो ऐसे में उस व्यक्ति को और साथ होने की संभावनाएं अन्य लोगों की तुलना में अधिक होती हैं अध्ययनों से यह देखा गया है कि  डिप्रेशन के लिए कुछ जीन भी जिम्मेदार होते हैं। 

भावी डर- किसी भी प्रकार का भावी डर जैसे कि नौकरी या आय खोने का डर, तलाक हो जाने सेवानिवृत्त होने का डर आदि जीवन में  होने वाले कुछ भावी अच्छी घटनाएं जैसे कि नई नौकरी शुरू करने, स्नातक होने या शादी करने आदि भी डिप्रेशन का कारण बन सकती हैं। 

अन्य व्यक्तिगत समस्याएं- कुछ मानसिक बीमारियों के कारण सामाजिक अलगाव या परिवार या सामाजिक समूह से निकाले जाने जैसी समस्याएं भी डिप्रेशन का कारण बन सकती हैं। 

गंभीर रोग- किसी गंभीर रोग से ग्रस्त व्यक्ति जिसका लंबे समय से इलाज चल रहा हो  इनके भी डिप्रेशन से ग्रस्त होने की संभावना बहुत अधिक होती है।  

नशीले पदार्थ -  किसी भी प्रकार का नशा करने वाले व्यक्ति भी डिप्रेशन से ग्रस्त  हो जाते हैं, ड्रग्स या अल्कोहल अस्थाई रूप से बेहतर महसूस कराते हैं लेकिन अंततः वे  डिप्रेशन को बढ़ाते हैं। 

डिप्रेशन के लक्षण क्या हैं?

डिप्रेशन के सामान्य लक्षणों में शामिल हैं:-

  • लगातार उदासी और चिंता
  • निराशा या निराशावादी भावनायें
  • चिड़चिड़ापन, हताशा या बेचैनी की भावना
  • अपराधबोध, व्यर्थता या लाचारी की भावना
  • शौक या गतिविधियों से अरुचि
  • कम ऊर्जाथकान, सुस्ती
  • ध्यान केंद्रित करने, याद रखने या निर्णय लेने में कठिनाई 
  • नींद न आना, सुबह जल्दी नींद खुल जाना या अधिक नींद आना 
  • भूख का अनियमित होना (सामान्य से अधिक या कम हो जाना)  
  • वजन अनियमित होना (सामान्य से अधिक या कम हो जाना)   
  • बिना स्पष्ट कारण के खुजली, दर्द, सिर दर्द, ऐंठन, या पाचन संबंधी समस्याएं
  • जीवन व्यर्थ होने या, आत्महत्या के विचार आना

विभिन्न आयु वर्ग में डिप्रेशन से नुकसान या लक्षण अलग हो सकते हैं 

उम्र के आधार पर डिप्रेशन के लक्षणों में भिन्नता हो सकती है-


छोटे बच्चों को यह व्यक्त करने में कठिनाई हो सकती है कि, वे कैसा महसूस करते हैं। इससे छोटे बच्चों में यह पता लगा पाना मुश्किल होता है कि वे डिप्रेशन में हैं।

बच्चो के कुछ सामान्य लक्षणों में, बच्चे परेशान हो सकते हैं, बिना किसी कारण वे कर्कश, चिड़चिड़ा  हो सकते हैं, बीमार होने का नाटक कर सकते हैं, स्कूल जाने से मना कर सकते हैं, क्षण भर के लिए भी माता-पिता से अलग नहीं हो पाते, उन्हें माता -पिता के मृत्यु का भय बना रहता हो आदि 

डिप्रेशन से पीड़ित बड़े बच्चों और किशोरों में स्कूल से अकारण भय बना रहता है, निराशा और बेचैनी महसूस कर सकते हैं, उनमें आत्म-विश्वास की कमी हो सकती है। उन्हें अन्य समस्याएं भी हो सकते हैं, जैसे कि भूख न लगना या अधिक लगना , किसी काम में ध्यान न लगा पाना आदि।

किशोरावस्था में, महिलाएं जैविक कारणों और हार्मोनल कारणों से पुरुषों की तुलना में अधिक बार डिप्रेशन का अनुभव करती हैं।

डिप्रेशन से ग्रस्त युवा लोंगों में चिड़चिड़ापन, वजन बढ़ने और हाइपर्सोमनिया की शिकायत हो सकती है, जीवन और भविष्य के बारे में नकारात्मक दृष्टिकोण हो जाता है। उन्हें अक्सर अन्य समस्याएं भी होती हैं, जैसे कि एंजायटी, सामाजिक भय, आतंकी विचार , और नशे की आदत आदि ।

मध्यम आयु वर्ग के वयस्कों में अधिक डिप्रेशनग्रस्तता हो सकती है, इनमें कामेच्छा में कमी, मध्य-रात्रि अनिद्रा, या सुबह जल्दी जग जाना आदि हो सकता है। वे कई बार दस्त या कब्ज (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल लक्षण) भी दिखायी देते हैं।

डिप्रेशन से ग्रस्त वृद्ध आमतौर पर उदासी या दुःख का अनुभव करते हैं या अन्य कम स्पष्ट लक्षण हो सकते हैं। इनमें डिप्रेशन  के साथ अन्य चिकित्सा समस्याएं या दर्द भी हो सकता है। गंभीर मामलों में, यादाश्त की समस्याएं (जिसे स्यूडोडेमेंटिया कहा जाता है) भी हो सकती हैं।

डिप्रेशन का उपचार कैसे किया जाता हैं?

डिप्रेशन के उपचार में यह बहुत महत्वपूर्ण होता है कि, डिप्रेशन ग्रस्त व्यक्ति या उसके पारिवारिक सदस्य और मित्र यह समझें की व्यक्ति  डिप्रेशन में हैऔर इसे उपचार की आवश्यकता है। भारत में डिप्रेशन के प्रति जागरूकता की काफी कमी है, जिसके कारण इसे कोई बीमारी नहीं समझा जाता जिस के इलाज की आवश्यकता हो।

डिप्रेशन के प्रति जागरूकता आवश्यक है, जिससे हम स्वयं में, अपने परिवार और मित्रों में होने वाले डिप्रेशन को समय पर पहचान सकें, और इलाज हेतु उन्हें प्रेरित कर सकें, डिप्रेशन में परिवार और मित्रों का सहयोग सबसे महत्वपूर्ण होता है।

समय पर यदि डिप्रेशन को पहचान कर उसका इलाज किया जाए, तो किसी गंभीर स्थिति से बचा जा सकता है, डिप्रेशन के इलाज के तीन महत्वपूर्ण घटक है-

  • भावनात्मक सहयोग
  • मनोवैज्ञानिक परामर्श
  • दवाएं

भावनात्मक सहयोग

भावनात्मक सहयोग से तात्पर्य है; पारिवारिक सदस्यों, मित्रों,सहकर्मियों, और रिश्तेदारों का सहयोग। डिप्रेशन ग्रस्त व्यक्ति के लिए भावनात्मक सहयोग महत्वपूर्ण होता है। इस प्रकार का सहयोग देने वाले व्यक्ति मरीज की स्थिति को सुधारने में और भी बेहतर कार्य कर सकते हैं, यदि वे मरीज के मनोवैज्ञानिक चिकित्सक के संपर्क में हों, और उनके परामर्श के अनुसार कार्य करें।

मनोवैज्ञानिक परामर्श 

मनोचिकित्सा के संदर्भ में भारत में अनेक मिथक है की, मनोचिकित्सक पागलपन का इलाज करते हैं, जबकि कई नेशनल और इंटरनेशनल स्तर के सेलिब्रिटी कभी न कभी डिप्रेशन ग्रस्त रहे हैं, और नियमित उपचार भी लिया है। वर्तमान जीवन शैली में मनोचिकित्सक की भूमिका बहुत बढ़ गई है।

डिप्रेशन के केस में प्राथमिक तौर पर मनोचिकित्सक ही यह निर्धारित कर पाएगा की, किस स्तर की चिकित्सा की जानी है, इसमें-

काउंसलिंग

चिकित्सक के साथ कई सत्र में काउंसलिंग हो सकती है (वर्तमान में यहां ऑनलाइन माध्यमों से भी की जा रही है)।

समूह-चर्चा (ग्रुप-डिस्कसन)

चिकित्सक की देखरेख में कई डिप्रेशन ग्रस्त व्यक्ति अपनी बातें और भावनाएं सभी के समक्ष रखते हैं और सभी एक दूसरे को सुनते हैं ।

सीबीटी (कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी)

वर्तमान में डिप्रेशन में सीबीटी बहुत कारगर साबित हो रही है। यह एक प्रकार की मनोचिकित्सा है, जिसमें मनोवैज्ञानिक परामर्श और उपचारों का एक मिला जुला रूप होता है, जिसका उद्देश्य हानिकारक विचारों को पहचानना और उसे बदलना है, जो चिंता और परेशान का कारण बनते हैं।

दवाएं

एंटीडिप्रेसन्ट का प्रयोग आमतौर पर डॉक्टर तनाव और डिप्रेशन के लक्षणों में करते हैं, अब सेरोटोनिन रीपटेक इनहिबिटर्स (एसएसआरआई) का उपयोग किया जाता हैं, जिनके पुराने एंटीडिपेंटेंट्स की तुलना में कम साइड इफेक्ट होते हैं, लेकिन जब उपचार शुरू होता है तो झटके, मतली और यौन रोग होने की संभावना होती है।

उपयोग की जा सकने वाली अन्य दवायें  हैं:-

मोनोमाइन ऑक्सीडेज इनहिबिटर (MAOI)

बीटा अवरोधक

बसपिरोंन (Buspirone)

विशेष:- किसी भी प्रकार की दवा या उपचार का प्रयोग डॉक्टर/विशेषज्ञ की सलाह से ही करे, इस आर्टिकल मे दी गयी जानकारी कोई चिकित्सकीय परामर्श नहीं है, इसका उद्देश्य मात्र विषय पर आपको जागरूक करना है। 

यह आर्टिकल आपको कैसा लगा कमेंट बाक्स में जरूर बताएंजिससे आर्टिकल में सुधार कर, इसे और उपयोगी बनाया जा सकेआर्टिकल  को पूरा पढने के लिए धन्यवाद ....🙏

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